Monika garg

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लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-18)#कहानीकार प्रतियोगिता के लिए

गतांक से आगे:-


सुबह हो चुकी थी। भूषण प्रसाद सुबह की चाय अक्सर लान में बैठाकर ही पीते थे ।आज भी वो चाय और अखबार लेकर लान की कुर्सी पर आकर पसर गये ।तभी उन्हें किशन लाल उनका माली आता दिखाई दिया ।उसका चेहरा बिल्कुल थका थका सा और उतरा हुआ था ।हर रोज जो फुर्ती उसके बदन में होती है वो कहीं गायब हो गई थी।उसकी ये हालत देखकर भूषण प्रसाद ने उसे आवाज दी,

"किशनलाल,इधर तो आओ । क्या बात आज फिर से बिटिया की तबीयत खराब हो गयी है क्या?"

किशनलाल भूषण प्रसाद के पास आकर ज़मीन पर बैठ गया और आंखों में पानी लाते हुए बोला,

"क्या करूं मालिक बहुत परेशान हूं ।अभी तक तो यूं परेशान था कि बिटिया रात बेरात उठकर कहां चली जाती है पर कल तो……."


"क्यों क्या हुआ कल रात को ?"


"अब क्या बताऊं साहब जी , हमारी परी जब रातों को उठ कर यूं अचानक कहीं चली जाती थी तो मैंने अपनी घरवाली से कहा कि तुम परी के पांव से अपना पांव बांध कर सोया करो ताकि जब वो अचानक उठे तो तुम्हें पता चल जाए।कल रात भी ऐसे ही वो सोयी थी अचानक आधी रात को उसे ऐसे लगा जैसे परी वो रस्सी खोल रही है ।वह सतर्क हो गयी ।जब वो घर से बाहर गयी तो हम भी उसके पीछे-पीछे हो लिये…….."


"फिर …..फिर क्या हुआ? वो नींद में चलकर कहां जाती है?"


"साहब हम पीछा करते-करते जंगल तक चले गये ।तभी अचानक से परी रुकी और एक चट्टान में कुछ ढूंढने लगी तभी वो चट्टान एक ओर सरक गयी और वो एक दरवाजे के अंदर चली गयी।हम भी उसके पीछे-पीछे थे ।वो चलती चलती उस सुरंग से एक पुरानी खंडहर सी इमारत में चली गयी ।साहब जी ऐसे लग रहा था जैसे वो कभी से ये रास्ता और उस हवेली नुमा इमारत का चप्पा-चप्पा जानती हो ।फिर…..फिर वो….."


"क्या फिर? जल्दी बताओ " भूषण प्रसाद को कहानी की कड़ियां जुड़ती हुई सी लग रही थी।


"साहब जी आप विश्वास नहीं करेंगे हमारी परी उस हवेली में ऊपर के कमरे में चली गई और वो उस कमरे में ऐसे जा रही थी जैसे वो उसी का कमरा हो।और वहां जाकर उसने एक नर्तकी के सुंदर से कपड़े पहन लिए और पूरा श्रृंगार कर ,गहने वहने पहन कर वो किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी।फिर वो अचानक से उठकर शीशे के पास गयी और एक बटन सा दबाया शीशा एक ओर सरक गया और एक दरवाजा और दिखाई देने लगा……"


"जल्दी बताओ आगे क्या हुआ ? क्या वो उस दरवाजे में गयी ?"


"हां साहब वो मशाल लेकर उस दरवाजे में गयी और चलती रही फिर थोड़ी देर में हम तीनों वो गांव से बाहर महल के खंडहर है ना उसमें खड़े थे फिर अचानक हमारी परी किसी "देव" नाम के आदमी को बुलाने लगी और अपने आप को चंद्रिका कहने लगी और जोर जोर से रोने लगी ।ऐसे लग रहा था जैसे वो किसी देव से बिछड़ गयी है। पता नहीं साहब क्या हो गया है उसे।"

  यह कहकर किशनलाल जोर जोर से रोने लगा।इधर जब उसने देव और चंद्रिका नाम लिया तो भूषण प्रसाद के कान खड़े हो गये वो समझ गये कि सारा माजरा क्या है।

राज भी लाल हवेली में उस कमरे में किसी चंद्रिका नाम की लड़की को ये कहकर बेहोश हुआ था जब कि राज को ये नाम तो पता ही नहीं था ।ये नाम तो कल ही शास्त्री जी ने उस किताब में पढ़कर बताया था कि कोई चंद्रिका नाम की राज नर्तकी भी थी।इसका मतलब है राज जो है वो पिछले जन्म में देव…..था और ये माली की लड़की राज नर्तकी "चंद्रिका"।

ये तो पुनर्जन्म का मामला हो गया है ।वो कुछ सोचते हुए उठ खड़े हुए और बोले ,"रुकों मैं तुम्हें एक चीज दिखाता हूं।" यह कहकर वो अंदर गये और जब बाहर आये तो उनकी एक हाथ की मुठ्ठी बंद थी ।उसे खोलकर वो किशनलाल को दिखाकर बोले," ये बालियां पहचानते हो ?"


"क्यों नहीं साहब ये तो मेरी परी की बालियां है ।"


"ये बालियां हमें लाल हवेली के कमरें में मिली थी"


"हां साहब वो दो दिन पहले परी इसी तरह रात को कहीं चली गयी थी । बहुत खोजा हमने उसे फिर मेरे दिमाग में आया कि एक दिन वो महल के खंडहरों का जिक्र कर रही थी कहीं वहीं तो नहीं है इसलिए मैं उसे देखने वहां गया तो ये उसी चट्टान पर बेसुध होकर लेटी थी । मैं इसे घर ले आया तब इसने कानों में पुराने जमाने के झुमके पहने थे ।हम समझें पता नहीं किसके उठा लाई है पर साहब……"


"पर क्या?"


"वहीं झूमका कल मैंने आप के बगीचे में देखा ।मैंने किसी को नहीं बताया और चुपचाप उसे अपनें जेब में रख लिया। मैं तो ये सोच रहा हूं कि मेरी परी जो आपकी कोठी का रास्ता तक नहीं जानती वो यहां तक कैसे पहुंची?"

"तुम चिंता मत करों किशनलाल मुझे कुछ कुछ समझ आ रहा है और जब पूरा सच सामने आ जाएगा तो तस्वीर बिल्कुल साफ हो जाएगी।"


किशनलाल भूषण प्रसाद की बातें कुछ समझ रहा था कुछ नहीं ।तभी भूषण प्रसाद ये कहकर उठ खड़े हुए कि काम पर जाना है देर है रही है।


ये कहकर वो अंदर आ गये । उन्हें पता ही नहीं चला कब से नयना और राज पीछे खड़े उनकी बातें सुन रहे थे।राज को देखकर भूषण प्रसाद बोले,"अरे राज ,तुम उठ गये ।रात कहां चले गये थे ?"


"वो अंकल अभी भी उठा हूं ।और रात का वाक़या तो आप किशनलाल के मुंह से सुन ही चुके हैं ।"


"मतलब"


" यही कि ये दोनों अपनी बेटी के पीछे पीछे थे तो मैं इन तीनों के पीछे पीछे था।"


"तुम कहना क्या चाहते हो ? यही कि जो वाक़या किशनलाल हमें सुना रहा था वो तुम्हारा आंखों देखा है।"

"जी अंकल"


तभी नयना बोल पड़ी ,"पापा ये माली की बेटी को क्या नींद में चलने के दौरे पड़ते हैं ?"


"नहीं बेटा ,मामला बड़ा गम्भीर है ।अभी तुम्हारी समझ में नहीं आयेगा। राज तुम एक बार स्टडी रूम में आना तुम से कुछ पूछना है।"



कहानी अभी जारी है………. ‌



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2 Comments

Mohammed urooj khan

25-Oct-2023 12:04 AM

👌🏾👌🏾👌🏾

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KALPANA SINHA

12-Aug-2023 07:19 AM

Nice part

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